देवेन्द्र रजक

देवेन्द्र रजक
उम्र 30, बुनकर

देवेन्द्र ने आर्थिक तंगी के कारण आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और वह अपने पिता जी के साथ ही मजदूरी एवं खेती करने लगा। परन्तु खेती बहुत कम थी और मजदूरी करके वह मात्र पैतालिस सौ रुपए के आस-पास ही कमा पाता था, उतने पैसों मे उसके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं थी। बहुत परेशान होने के बाद जब उसे गांव के मित्र से बीना बारह में स्थित हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र के बारे में पता चला तो उसने प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया। अब उसे बहुत अधिक मेहनत भी नहीं करनी पड़ती और छांव में बैठकर हथकरघा के माध्यम से शुद्ध सूती कपड़ा बनाता है। ऐसा करके वह बारह से चौदह हज़ार रुपए तक प्रति माह अर्जित कर लेता है। इससे उसके परिवार की पूरी ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं और भविष्य के लिय कुछ बचत भी हो जाती है। हथकरघा के माध्यम से उसके जीवन में बहुत सुधार हुआ है, जिसके बिना वह अब अधूरा महसूस करता है।
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